लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर क्या होता है | Load Bearing Structure in Hindi

आइये समझते है लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर | Load Bearing Structure क्या होता है, और साथ साथ इसके फायदे और नुकशान क्या होते है।

वैसे तो इंजीनियरिंग में बहुत तरह के ढांचे (Structure) होते है। आप अगर 2 से 3 मंजिल तक का घर बनाना चाहते है और उसे कम से कम पैसे में तैयार करना चाहते है, तो पैसो की बचत शुरुवात से ही करनी पड़ेगी।

इसलिए हमने लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर (Load Bearing Structure) के बारे में लिखा है, उसे ध्यान से पढ़े और पूरा पढ़े, एक एक चीज हमने बिलकुल अच्छे से बताई है। ऐसा आपको कही नहीं मिलेगा, चाहे आप बाद में ढूंढ के देख लेना, अभी आप आगे पढ़ने पे ध्यान दे।

अगर आप दो से तीन मंजिल तक घर बना रहे हैं, तो आप लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर (Load Bearing Structure) तरीके का चुनाव कर सकते है, इस तरीके से आप दो से तीन मंजिल तक का घर तो बहुत आराम से बना सकते है, लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर को भार उठाने वाला ढांचा भी कहते है।आइये अब समझते है, क्या होता है लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर?


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लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर (Load Bearing Structure)

लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर (Load Bearing Structure) में पुरे घर के भार को उठाने के लिए, आप कंक्रीट के कॉलम और बीम का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि इसमें पुरे घर का भार को नीव तक, दीवारों की मदद से पहुंचाया जाता है। इसलिए इसे भार उठाने वाला या वाल बेअरिंग स्ट्रक्चर (Wall Bearing Structure) भी कहते है। यह तरीका सालो से इस्तेमाल किया जा रहा है। वैसे तो हम आपको 3 मंजिल तक ही इस तरीके को इस्तेमाल करने की सलाह देते है, मगर कई देशों में तो 12 मंजिलें तक भी इसी तरीके से ही बनाई गई हैं।


नीव बनाने का तरीका

इसके नीव बनाने से पहले आपको के लिए ये पक्का होना चाहिए की, आप कितनी मंजिल घर बनाने वाले है। वैसे तो इस तरीके का इस्तेमाल 3 मंजिल तक के लिए ही करना चाहिए, इससे ज्यादा होने पर ये भूकंप के झटको में कुछ ख़ास कामयाब नहीं होता है। थोड़े मोटे झटको को तो ये बर्दास्त कर लेता है, मगर बड़े भूकंप में दीवारों में दरारे आना भी कोई बड़ी बात नहीं है।

लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर (Load Bearing Structure) में नीव डालने के कई तरीके हो सकते है :-

  • 2 मंजिल तक के घर के लिए
  • 3 मंजिल तक के घर के लिए

नीव डालना से पहले हम ये जरुरी बात और जान लेते है इसकी जरुरत आपकी नीव डालने के तरीके में पड़ेगी।

PCC क्या होता है ?
PCC का का मतलब प्लेन सीमेंट कंक्रीट (Plain Cement Concreat) होता है। इसे बिना सरिये के केवल सीमेंट, रोड़ी, बदरपुर और पानी मिला के डाला जाता है। इसका इस्लेमाल केवल जमीन की सतह को मजबूत करने के लिए होता है।

चलिए अब सबसे पहले हम समझते है लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर की नीव कैसे डालते है।

2 मंजिल तक के घर के लिए नीव

  • सबसे पहले नीव के लिए खुदाई करेंगे, कम से कम 3 फ़ीट गहरा और 3 फ़ीट चौड़ा
  • फिर जमीन को बराबर कर के PCC डालेंगे 30″ इंच चौड़ा और 4 इंच मोटा
  • PCC डालने के दोनों तरफ बराबर जगह छोड़ के बीच में बची जगह 24″ इंच में ईंट की चुनाई करनी है। (अगले दिन तराई करनी है)
  • 24 इंच चुने के ऊपर फिर दोनों तरफ से ढाई इंच छोड़ के बीच में बची जगह 19″ इंच में ईंट की चुनाई करनी है। (अगले दिन तराई करनी है)
  • 19 इंच चुने के ऊपर फिर दोनों तरफ से ढाई इंच छोड़ के बीच में बची जगह 14″ इंच में ईंट की चुनाई करनी है। (अगले दिन तराई करनी है)
  • फिर दोनों तरफ से ढाई इंच छोड़ के बीच में बची जगह 9″ इंच में ईंट की चुनाई से दीवार बनानी शुरू कर सकते है।

**PCC डालने के बाद से अगले दिन से हर रोज तराई करनी है। और आप 2 मंजिल के घर के लिए भी 3 मंजिल वाले तरीके को इस्तेमाल कर सकते है। ये थोड़ा महंगा पड़ सकता है पर इससे मजबूत होगा।


3 मंजिल तक के घर के लिए नीव

  • सबसे पहले नीव की खुदाई करेंगे कम से कम 4 फ़ीट गहरा और 4 फ़ीट चौड़ा
  • फिर जमीन को बराबर कर के PCC डालेंगे – 36″ इंच चौड़ा और 5 इंच मोटा (अगले दिन तराई करनी है)
  • PCC डालने के दोनों तरफ तीन इंच जगह छोड़ के बीच में बची जगह 30″ इंच में ईंट की चुनाई करनी है। (अगले दिन तराई करनी है)
  • 30″ इंच चुनाई के ऊपर फिर दोनों तरफ से तीन इंच छोड़ के बीच में बची जगह 24″ इंच में ईंट की चुनाई करनी है। (अगले दिन तराई करनी है)
  • 24 इंच चुनाई के ऊपर फिर दोनों तरफ से तीन इंच छोड़ के बीच में बची जगह 18″ इंच में ईंट की चुनाई करनी है। (अगले दिन तराई करनी है)
  • 18 इंच चुनाई के ऊपर फिर दोनों तरफ से तीन इंच छोड़ के बीच में बची जगह 12″ इंच में ईंट की चुनाई करनी है। (अगले दिन तराई करनी है)
  • फिर दोनों तरफ से तीन इंच छोड़ के बीच में बची जगह 9″ इंच में ईंट की चुनाई से दीवार बनानी शुरू कर सकते है।

लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर से जुडी कुछ जरुरी सलाह

  • आप लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर(Load Bearing Structure) में भी प्लिंथ बीम(Plinth Beam) डाल सकते है, क्योकि प्लिंथ बीम का काम भूकंप के तेज झटकों से भी घर को संभाल कर रखना होता है। और अगर आप भूकंप के तेज झटकों में घर को और भी ज्यादा सुरक्षित करना चाहते है तो आप टाई बीम का भी इस्तेमाल भी कर सकते हैं, ये लिंटल लेवल(वो लेवल जहा पे दरवाजो और खिड़कियों को चौखट ख़त्म हो जाती है) डाली जाती है, और इसका काम सारी दीवारों को बांधकर रखना होता है, झटकों सेऔर आपको DPC डालना भी जरुरी है, क्योकि DPC डालने से आप जमीन से आने वाली सीलन को बढ़ने से रोक देते है।
  • अगर आप टाई बीम इस्तेमाल नहीं कर रहे तो कम से कम आप खिड़कियों और दरवाजो के ऊपर लिंटल बीम जरूर बनवाये वो भी कम से कम ढाई इंच मोटी ताकि आपके खिड़किया और दरवाजे हमेशा सुरक्षित रहें।

लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर(Load Bearing Structure) के फायदे

  • ये पुराना मगर कामयाब और विश्वसनीय तरीका है, हलाकि अब इसका चलन अब कम होता जा रहा है, क्योकि लोग ये खुद ही पक्का नहीं कर पाते के उन्हें कितने मंजिल का घर बनाना है, और ठेकेदार पैसे बचने के चक्कर में कंक्रीट के फ्रेम वाला (RCC Frame Bearing Structure) की सलाह दे देता है। हालांकि अगर आप 3 मंजिल तक ही घर बनाना चाहते है तो, इस तरीके से बढ़िया और सस्ता और कोई तरीका नहीं है।
  • वैसे तो ये भी काफी हद तक भूकंप रोधी होता है मगर अगर आप चाहते है की भूकंप के बहुत तेज झटको से भी आपका घर बचा रहे तो आपको कंक्रीट के फ्रेम वाला (RCC Frame Bearing Structure) तरीका इस्तेमाल करना चाहिए। क्योकि जो ईमारत 15 से 20 साल पुरानी होगी पक्का तो नहीं पर 80% इसी तरीके से बनी होगी।
  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) में सीमेंट और स्टील की खपत काफी कम होती है। क्योकि इसमें घर के ढंके का बोझ दीवारें उठती है।
  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) की मरम्मत और रखरखाव में कम खर्च आता है।
  • वैसे तो घर बनाने के लिए बहुत सारे नियम होते है जो सरकार, इंजीनियर,ठेकेदारों के हिसाब से बनाए गए है। जिनकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। मगर अगर हम भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) का इस्तेमाल कर रहे है तो, अगर हमसे हम घर बनाने को लेकर कोई भूल चूक, गलती या कमी हो जाती है, तो भी इससे ईमारत में कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता है।
  • इसको बनाने में दूसरे तरीको से थोड़ी ज्यादा लेबर को थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, और इसीलिए इसका काम थोड़ा धीरे होता हुआ लगता है मगर धीरे होने के भी अपने फायदे है। पैसे का इंतजाम करने के लिए समय मिल जाता है, तराई के लिए पूरा टाइम मिलता है, अगर को गलती हो भी जाए तो सुधारने का टाइम मिल जाता है। चीजों की चुनने का टाइम मिल जाता है। ऐसे ही और भी बहुत फायदे है। बस काम लगातार चलते रहना चाहिए कोई ख़ास देर नही होती इसमें
  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) घर को बनाने के लिए किसी इंजीनियर की जरुरत नहीं पड़ती है। इसे कोई भी अनुभवी ठेकेदार बना सकता है, क्योकि भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) कुशल(Skilled) और अकुशल(Semi-Skilled) दोनों तरह के लेबर का इस्तेमाल होता है।
  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) को बिना महंगे और भारी मशीनो के भी बनाया जा सकता है।

लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर(Load Bearing Structure) के नुकशान

  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) में दीवारें मोटी होती हैं, जिसकी वजह से आपको इस्तेमाल करने के लिए थोड़ी कम जगह मिलती है जैसे मान लीजिये अगर आप कंक्रीट के फ्रेम वाला (RCC Frame Bearing Structure) का इस्तेमाल कर रहे है तो आप 4″ इंच की दीवार पे भी 10 मंजिल तक घर बना सकते है मगर अगर आप भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) तरीके का इस्तेमाल कर रहे है तो आपको सारी दीवारे कम से कम 9″ इंच की रखनी ही पड़ेगी।
  • घर के दीवारों में बदलाव करना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है, या समझ ले नामुमकिन है, क्योकि इसमें सारे घर का भार, दीवारों पे ही टिका रहता है, पर ये कोई ख़ास परेशानी नहीं है, क्योकि भारत में, घर की दीवारों को, कोई भी जल्दी से बदलाव नहीं करता है, इस परेशानी से बचने के लिए, घर बनने से पहले, आप नक़्शे और अपनी जरूरतों ध्यान में रखते हुए घर बनवाए।
  • इसमें नीव के लिए पुरे प्लाट में खुदाई करनी पड़ती है, और नीव में ज्यादा ईंटे लगती है जिसके ऊपर पूरा घर का वजन होगा और नीव और दीवारों की मोटाई मकान की ऊंचाई बढ़ने के साथ बढ़ती है।
  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) में अच्छी और मजबूत ईंटो का इस्तेमाल किया जाता है, और मजबूत और अच्छी ईंट थोड़ी महंगी आती है, ये भी कोई ख़ास नुकशान वाली बात नहीं है, मगर आपको हर बात बताना भी तो जरुरी है।
  • बड़ा दरवाजा, बड़ी खिड़कियाँ और 3 फुट से बड़ा छज्जा या बालकॉनी नहीं बनाया जा सकता है। क्योकि घर के सारे वजन को दीवारों पे ही पड़ता है और दरवाजो और खिड़कियों के लिए जगह बनाने के लिए दीवारे हटानी चाहिए।
  • दीवारे मोटी होने की वजह से कमरों में कम जगह मिलती है। अगर आपके पास पर्याप्त जगह नहीं है, तो ये दिक्कत वाली बात हो सकती है, मगर अगर आप हर कमरे में से 8″ इंच तक जगह को कम कर सकते है तो आपको घबराने वाली कोई बात नहीं है।
  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) ज्यादा डिज़ाइन वाला घर बनाना मुश्किल है इसमें Simple डिज़ाइन बनाये जाते है।
  • भार उठाने वाला (Load Bearing Structure) में दीवार के ऊपर दीवारा और कमरे के ऊपर कमरे बनाने पड़ते है।
  • छत डालने के लिए सारी दीवारों को पहले बनाना पड़ता है, क्योंकि जब तक सारी दीवारे खड़ी नहीं हो जाती आप छत को नहीं बनवा सकते है। इसलिए छत डालने के लिए देरी हो सकती है।
  • अगर आपकी जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है, तो इस तरीके का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। क्योकि इस तरीके में आप रहने के लिए जो घर बनते है उसमे दीवारे मोटी होने की वजह से जगह रहने के लिए जगह कम मिलती है दूसरे तरीके भी अब है जिनसे आपकी जगह बचती है मगर वो थोड़े महंगे है।

लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर(Load Bearing Structure) के लिए सावधानी

  • जितना हो सके अच्छे और अनुभवी ठेकेदार और मिस्त्री से काम करवाए।
  • कई बार ठेकेदार अपने फायदे के लिए नीव की गहराई को कम कर देता है इसके लिए आपको ध्यान देना चाहिए।
  • इस तरीके को अपनाने के लिए घर की चौड़ाई 15 फ़ीट से कम नहीं होनी चाहिए।
  • अच्छे सीमेंट से काम करवाए और तराई पे ख़ास ध्यान दे।
  • घर बनाने से पहले सोच ले कैसा नक्शा होना चाहिए।
  • अगर आपको समझ नहीं आया या किसी भी तरह की दिक्कत हो रही हो तो हमसे पूछना न भूले।

तो कैसी लगी हमारी पोस्ट “लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर क्या होता है | Load Bearing Structure” जरूर बताये


लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाब

कितनी गहरी नीव खोदनी चाहिए ?

घर बनाने के बात जब नीव खोदने की आती है तो अक्सर लोग ध्यान नहीं देते है, और कुछ लालची ठेकेदार अपने फायदे के लिए नीव की गहराई को कम कर देता है, मगर हम आपको कुछ नियम बताते है जिससे आप आसानी से समझ पाएंगे की नीव को कितना गहरा खोदना चाहिए। इसके लिए आपको ध्यान देना चाहिए।

– सबसे पहले समझने वाली बात ये है, की हमने तब तक खोदना चाहिए, जब तक कड़ी या सख्त मिट्टी न मिल जाए। कुछ इलाको में सख्त मिट्टी, जल्दी मिलती है, तो कुछ इलाको में, सख्त मिट्टी देर में मिलती है। मगर कुछ जगह ऐसी भी है जहा सख्त मिट्टी 1 या 2 फ़ीट पे ही निकल जाती है मगर ऐसे लोगो को ध्यान देना चाहिए। आपके घर को भूकंप में गिरने से बचाने के लिए उसे जमीन के नीचे दबा हुआ होना चाहिए ताकि वो भूकंप के झटको को भी झेल सके। इसलिए अगर हमें सख्त मिट्टी जल्दी मिल जाती है तो भी कम से कम 1 मंजिल के लिए 3, 2 मंजिल के लिए 4 फ़ीट, 3 मंजिल के लिए 5 फ़ीट खोदना ही चाहिए।

DPC क्या होती है ? और इसका क्या काम होता है ?

DPC को Damp Proof Course कहते है। इसको आप आसान भाषा में समझे तो
Damp – नमी
Proof – से बचाव
Course – तरीका

DPC जमीन से आने वाली नमी को रोक देती है, और इसे डालने के लिए कुछ ख़ास नहीं करना पड़ता है। ये कंक्रीट का लगभग 2 इंच मोटी सतह होती है जिसके अंदर वाटरप्रूफ केमिकल को मिलाया जाता है। इसे रोड के लेवल से कम से कम 4 इंच ऊपर डाला जाता है। जिससे DPC जमीन से आने वाली सीलन को बढ़ने से रोक देते है।

क्या हम लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर (Load Bearing Structure) में प्लिंथ बीम(Plinth Beam) डाल सकते है?

हाँ हम लोड बेअरिंग स्ट्रक्चर (Load Bearing Structure) में भी प्लिंथ बीम(Plinth Beam) डाल सकते है, क्योकि प्लिंथ बीम(Plinth Beam) का काम भूकंप के झटको में भी घर को संभाले रखना होता है।
और प्लिंथ बीम(Plinth Beam) डालने से आपके घर की मजबूती काफी बढ़ जाएगी।

प्लिंथ बीम(Plinth Beam) और DPC में क्या फर्क होता है ?

प्लिंथ बीम(Plinth Beam) – प्लिंथ बीम का काम भूकंप के झटकों से घर को संभाल कर रखना होता है।
DPC – डीपीसी का काम जमीन से आने वाली सीलन को दीवारों पर बढ़ने से रोकने का होता है।

क्या प्लिंथ बीम(Plinth Beam) भी सीलन को रोकती है?

हां, प्लिंथ बीम, डीपीसी से ज्यादा बेहतर सीलन को रोक सकती है, मगर इसके लिए जरूरी है, कि आपकी प्लिंथ बीम, रोड लेवल से, कम से कम 4 इंच ऊपर होनी चाहिए। और प्लिंथ बीम के चारों तरफ कहीं से भी मिट्टी दबी नहीं होनी चाहिए।

लिंटल बीम(Lintel Beam) और टाई बीम(Tie Beam) के क्या फर्क है?

लिंटल बीम – लिंटल बीम केवल उतनी दुरी में ही डाली जाती है, जितनी दुरी में खिड़कियों और दरवाजो की चौखट की चौड़ाई होती है। और लिंटल बीम की ऊंचाई खिड़कियों और दरवाजो की चौखट जहा ख़त्म होती है वह डाली जाती है। और इसका काम आपके खिड़कियों और दरवाजो की चौखट के ऊपर लगने वाली ईंटो के भार से बचाना होता है ताकि ये वजन की वजह से मुड़ या टेढ़ी न हो जाये।
टाई बीम – टाई बीम भी उतनी ही ऊंचाई पे डाली जाती है, जितनी ऊंचाई पे लिंटल बीम डाली जाती है मगर टाई बीम का काम पुरे घर की दीवारों को बांध के रखना होता है ताकि भूकंप के तेज झटको में दीवारों में दरार न आये। और साथ ही साथ ये लिंटल बीम का काम भी कर देती है।

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